Class 12 History Notes Chapter 1 Bricks, Beads and Bones — Complete Harappan Civilisation Summary, Notes, NCERT Solutions & Study Material

Class 12 History Notes Chapter 1 – Bricks, Beads aur Bones (Harappan Sabhyata)

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Book NameHistory
Class 12th
Textbook NCERT
Chapter Nameई टे मनके तथा अस्थियां
Website PageCBSE 12th class history chapter 1 ई टे मनके तथा अस्थियां
MediumHindi
History All Chapter NotesClick
 Check your Class 12 History Notes Chapter 1  हड़प्पा सभ्यता की खोज : 1856 में जब कराची और लाहौर के बीच पहली बार रेलवे लाइन का निर्माण किया जा रहा था तो उत्खनन कार्य के दौरान अचानक हड़प्पा पुरास्थल मिला। यह स्थान आधुनिक समय में पाकिस्तान है। उन कर्मचारियों ने इसे खंडहर समझ लिया और यहां की हजारों ईंट उखाड़ कर यहां से ले गए और ईंटों का इस्तेमाल रेलवे लाइन बिछाने में किया गया लेकिन वह यह नहीं जान सके की यहां कोई सभ्यता थी। 1922 में रखाल दास बनर्जी ने मोहनजोदड़ो नामक स्थान का उत्खनन किया जो पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र में लरकानाजिले में सिंधु नदी के दाएं तट पर स्थित है। हड़प्पा सभ्यता की खोज 1921-22 में दया राम साहनी, रखालदास बनर्जी और सर जॉन मार्शल के नेतृत्व हुई। मोहनजोदडो का शाब्दिक अर्थ : i) मृतको का टीला ii) मुर्दों का टीला iii) प्रेतो का टीला iv) सिंध का बाग v) सिंध ना नक्लस्थान। इन दोनों उत्खनन के बाद सन् 1924 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण डायरेक्टर जनरल सर जॉन मार्शल ने पूरे विश्व के सामने एक नई सभ्यता की खोज की घोषणा की। सर जॉन मार्शल ने लंदन वीकली नामक पत्रिका में इसे सिंधु सभ्यता नाम दिया। :- ह ड़प्पा सभ्यता का काल 2600 से 1900 ईसा पूर्व ईसा पूर्व ईसा पूर्व ईसा पूर्व ईसा पूर्व ईसा पूर्वईसा पूर्व ईसा पूर्व है नोट:- सैन्धव वासी लोग लोहे से परिचित नही थे उलेखनीय है कि लोहे का प्रचीनतम साक्ष्य / सबूत उत्तर प्रदेश के ऐटा जिला अतरंजीखेड़ा से मिला है। जिसका समय 1050 ई० पु० के आस पास स्वीकार किया गया हड़प्पा सभ्य ता का नाम हड़प्पा कैसे पड़ा इसका दूसरा नाम :- हड़प्पा सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह सभ्यता हड़प्पा नामक स्थान जो आज पाकिस्तान में यहां पर खोजी गई :- इस सभ्यता का एक और नाम है जिसे सिंधु घाटी की इस सभ्यता का एक और नाम है हा जाता है इसे सिंधु घाटी की सभ्यता इसलिए कहा जाता है जाता है क्योंकि यह सभ्यता सिंधु नदी घाटी तक फैली हुई थी जाता है  हमें हड़प्पा सभ्यता की जानकारी कैसे पता चलती हैववमभन्न स्थलों की खुदाई से प्राप्त सड़कों गमलयों भवनों स्नान गारो आदद के द्वारा नगर योजना वस्तुकला और लोगों के रहन-सहन के ववषय में जानकारी ममलती है कला शिल्प की वस्तुएं जैसे मिट्टी के खिलौने धातु की मूर्तियां आभूषण मृदभांड (मिट्टी के बर्तन) आदि से विभिन्न व्यावसायिक और सामाजिक दशा के विषय में जानकारी प्राप्त होती है ममट्टी की मोहरो से धमा मलवप आदद का ज्ञान होता है हड़प्पा सभ्यता के दो प्रसिद्ध केंद्र: हड़प्पा : – मोहनजोदड़ो अन्य प्रमुख शहर नागेश्वर (गुजरात) बालाकोट ( पाकिस्तान ) चन्हुदड़ो (पाकिस्तान ) कोटदीजी ( पाकिस्तान ) धौलावीरा (गुजरात) लोथल (गुजरात) कालीबंगन (राजस्थान ) बनावली (हरियाणा ) राखीगढी (हरियाणा)हड़प्पा सांथकृतत के निर्वाह के तरीके:- लोग कई प्रकार के पेड़ पौधों तथा जानवरों से भोजन प्राप्त करते थे मछली उनका मुख्य आहार था उनके अनाजों में गेहूं, जौ, दाल, सफेद चना तथा तिल शामिल थे। इन अनाजों के दाने कई हड़प्पा स्थलों से मिले हैं। लोग बाजरा तथा चावल भी खाते थे। बाजरे के दाने गुजरात के स्थलों से मिले हैं। चावल का प्रयोग कम किया जाता था क्योंकि चावल के दाने कम मिले हैं।वे जिन जानवरों से भोजन प्राप्त करते थे उनमें भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर शामिल थे। यह सभी जानवर पालतू थे। हिरण तथा घड़ियाल की हड्डियां भी मिली हैं। इससे अनुमान लगाया गया है कि हड़प्पा निवासी उनका मांस खाते थे।हड़प्पा सभ्यता में कृषि तकनीक:-हड़प्पा के लोग कृषि करते थे। खेत जोतने के लिए बैलों का प्रयोग होता था। साथ ही चोलिस्तान के कई स्थलों और बनावली (हरियाणा) से मिट्टी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं।3. कुएं से प्राप्त पानी का प्रयोग किया जाता था सिंचाई करने के लिए तथा तालाब नहर नदियां यह सब सिंचाई के साधन थे। बैलों का प्रयोग जुताई के लिए किया जाता था। साल में एक साथ दो फसलें उगाई जाती थीं।मोहनजोदड़ो एक नियोजित शहरी केंद्र:-हड़प्पा सभ्यता का सबसे अनूठा पहलू शहरी केंद्र का विकास थामोहनजोदड़ो सबसे प्रसिद्ध पुरास्थल है सबसे पहले खोजा गया स्थल हड़प्पा थाबस्ती दो भागों में विभाजित है एक छोटा लेकिन ऊंचाई पर बनाया गया दूसरा कई अधिक बड़ा है लेकिन नीचे बनाया गयापुरातत्वविदों ने इनको दुर्ग और निचला शहर का नाम दिया हड़प्पा सभ्यता में भवन निर्माण :- हड़प्पा सभ्यता में मकानों की योजना आंगन पर आधारित थी। जिसमें शौचालय, स्नानागार, स्टोर रूम, शयनकक्ष आदि के अतिरिक्त अन्य कमरे भी मिलते हैं। मजबूती के लिये नींव निर्माण की जाती थी। मकान रोड के किनारे मकान बने थे जिनसे सुविधा हवा, सफाई, प्रकाश की पूर्ण व्यवस्था होती थी।मकान जमीन से ऊंचाई पर बनाये जाते थे। मकानों के दरवाजे सड़कों की ओर खुले रहते थे। मकानों के प्रवेश द्वार मुख्य मार्ग की अपेक्षा गली की ओर खुले थे। जिसके कारण बाहरी हलचल, शोरगुल एवं प्रदूषण सुरक्षित रह होगा।सड़क के किनारे-किनारे पानी की निकासी के लिए नालियां बनी होती थीं। नालियों के ढक्कन की व्यवस्था होती थी। हड़प्पा सभ्यता में सार्वजनिक भवन :- सिंधु घाटी सभ्यता को दो भागों में विभाजित किया गया। जिसके ऊपरी हिस्से में सार्वजनिक भवन व निचले हिस्से में व्यक्तिगत आवास बने हुए थे। उत्खनन में सार्वजनिक या राजकीय भवनों के अवशेष मिले हैं। एक अवशेष मोहनजोदड़ो से मिला है। जो 70 मीटर लम्बा और 24 मीटर चौड़ा है। यह उस समय की सम्पन्नता का परिचायक है। यहाँ पर ही 71 मीटर लम्बा व उतना ही चौड़ा एक वर्गाकार कक्ष का अवशेष प्राप्त हुआ है। जिसमें 20 स्तम्भ हैं। एक अनुमान के अनुसार इस भवन का उपयोग आपसी विचार विमर्श धार्मिक आयोजन, सामाजिक आयोजनों के लिए किया जाता होगा। हड़प्पा सभ्यता में विशाल स्नानागार :-
  • स्नानागार जलाशय किले में स्थित था। 11.88 मीटर लम्बा 7.01 मीटर चौड़ा 2.43 मीटर गहरा। इसके तल पर सीढ़ियां बनी हुई हैं। यह सीढ़ियां पक्की ईंटों से बनाई गई हैं।
  • स्नान कुण्ड के चारों ओर कमरे बने हुए हैं और बरामदे भी बनाये गए हैं।
  • स्नान कुण्ड के कमरे के समीप एक कुआं बना हुआ है। जिससे पानी कुण्ड में आता था और कुण्ड के गन्दे पानी की निकासी।
  • एक अन्य दरवाजे (द्वार) से की जाती थी। गन्दा पानी फिर बड़ी नालियों के माध्यम से शहर से बाहर निकल जाता। स्नानागार की दीवारों के निर्माण में सीलन से बचने के लिए डावर या तारकोल का प्रयोग किया जाता था।
  • पूरे स्नानागार में 6 प्रवेश द्वार होते थे। स्नानागार में गर्म पानी की व्यवस्था भी होती थी।
नोट :- इस स्नानागार के बारे में अमेस्ट कहते हैं कि यह स्नानागार प्रोहित के स्नान के लिये होता था।अन्न भण्डार :-हड़प्पा नगर के उत्खनन में यहाँ के किले के राजमार्ग में 6-6 पक्तियों वाले अन्न भण्डार मिले हैं। अन्न भण्डार की लम्बाई 18 मीटर चौड़ाई +7 मीटर लम्बाई (18×7)। इसका मुख्य द्वार नदी की ओर खुलता था क्योंकि जो भी सामान जल मार्ग से आता था अन्न भण्डार में एकत्रित किया जाता था।हड़प्पा सभ्यता में सामाजिक जीवन
  • सामाजिक संगठन
  • भोजन
  • वस्त्र
  • आभूषण व सौंदर्य प्रदर्शन
  • मनोरंजन
  • प्रौद्योगिकी
  • मृत्तिका कर्म
  • चिकित्सा विज्ञान
हड़प्पा सभ्यता में सामाजिक संगठन :- इतिहासकार गार्नर चाइल्ड ने समाज को चार भागों में विभाजित किया है :-शिक्षित वर्ग :- प्रोहित, चिकित्सक, जादूगर, ज्योतिषयोद्धा / सैनिक :- इनकी पुष्टि दुर्गों में उपस्थिति के अवशेष से मिलते हैं।व्यापारी व दस्तकार :- बुनकर कुमार, सुवर्णकारश्रमिक एवं कृषक :- टोकरी बनाने वाले, मछली मारने वाले हड़प्पा सभ्यता में वस्त्र :- वह भिन्न-भिन्न ऋतुओं में अलग-अलग वस्त्र पहनते थे। महिला और पुरुष के वस्त्रों में भिन्नता पाई जाती थी। पुरुषों में धोती, पगड़ी, दशलोक (कुर्ता) एवं महिलाओं में घाघरा में साड़ी पहनती थीं। नोट :- चन्हुदड़ों से प्राप्त मूर्ति में पगड़ी मिली है।हड़प्पा सभ्यता में आभूषण एवं सौंदर्य प्रसाधन :- स्त्री व पुरुष दोनों ही आभूषण पहनते थे। वे दोनों ही सौंदर्य प्रसाधन के सामग्री का प्रयोग करते थे। अंगूठी, कान की बाली, चूड़ियां, बाजू बंध, हार, धनी लोग हाथों में सोने जैसी सामान्य लोग तांबे, कांसे तथा हड्डियों के बने आभूषण पहनते थे। हड़प्पा सभ्यता में मनोरंजन :-
  • मछली पकड़ना, शिकार करना उनका प्रिय मनोरंजन था। जानवरों की दौड़, जुनझुने, सीटीया तथा शतरंज के खेल उनके मनोरंजन के साधन थे।
  • इसके अलावा पत्थर तथा सीप की गोलियों से खेल खेलते थे। खुदाई में पशुओं की मूर्तियाँ, बेल गाड़ियां, दो पहियों वाला तांबे का रथ मिला है। नटराज की मूर्ति भी मिली है जिससे पता चलता है कि हड़प्पावासी भी नाच गाना करते थे।
प्रौद्योगिकी :-
  • वे धातु कर्म का निर्माण करते थे। अयस्कों से धातु अलग करते थे। मिश्रित धातु का भी निर्माण करते थे। तांबे में चाल्नी व टिन मिलाकर कांसा बनाते थे। अयस्क की आपूर्ति राजस्थान प्रदेश के झुंझुनूं के खेड़ी / झुमझुना व बिहार प्रान्त के हजारी बाग से करते थे। चकमक पत्थर के बोट व नलीबमक बम प्रान्त के हजारी बाग से करते थे। चकमक पत्थर के बॉट व नालिकाकार बम बनाते थे ।
हड़प्पा सभ्यता में चिकित्सा विज्ञान :-
  • जड़ी-बूटी, फल, वृक्षों के पत्ते, विशिष्ट प्रजाति के वृक्षों के फल, रस का सेवन करते थे। हिरणों के सींगों से चूर्ण बनाया जाता था। समुद्र के फेन (झाग) से भी औषधि बनाई जाती थी। शिलाजीत भी पाई जाती थी।
व्यापार :-
  • हड़प्पा के लोग व्यापार को अधिक महत्व देते थे।
  • नाप के लिए शीशे की पट्टी का प्रयोग करते थे।
  • चन्हुदड़ों के उत्खनन से प्राप्त पत्थरों के एक कारख़ाने का प्रयोग कारख़ाना मिला है।
  • समाज में अनेक व्यापारिक वर्गों के लिए रहते थे। जिनका कार्य केवल व्यापार या व्यवसाय से होता था। इनमें कुमार, बढ़ई, सुनार आदि प्रमुख थे।
  • आर्थिक व्यापार के अतिरिक्त इन्होंने ईरान, अफगानिस्तान, मेसोपोटामिया, इराक़ के साथ व्यापारिक सम्बन्ध थे।
  • अतिरिक्त व्यापार विदेशी माध्यम से जिनका बाहरी व्यापार मुहरों से किया जाता था। दूर देशों में शाही रानी का प्रयोग करते थे।
कुटीर उद्योग :-
  • कुम्हारों के द्वारा चाक से निर्मित मिट्टी की मूर्तियां, खिलौने, बर्तन के अतिरिक्त ईंटों का निर्माण भी बड़े पैमाने पर किया जाता था।
  • इस काल में हाथी दांत, सीपियों धातु के विभिन्न आभूषण बनाए जाते। 
हड़प्पा सभ्यता में धार्मिक जीवन :-
  • मात्र देवी की उपासना।
  • शिव या परम पुरुष की आराधना।
  • वृक्ष और पशु पूजा।
  • लिंग पूजा। 
मात्र देवी की पूजा या उपासना :-
  • हड़प्पा संस्कृति में मंदिरों का कर्म नहीं। उत्खनन में ऐसा कोई भवन प्राप्त नहीं हुआ जिसे देवालय की संज्ञा दी जा सके। इस काल की मिट्टी तथा पत्थर की अनेक नग्न नारी की मूर्तियां मिली हैं।
  • मात्र देवी के अनेक चित्र ताबीजों में मिट्टी के बर्तनों में तथा मोहरों में अंकित। इसमें यह पता चलता है कि यहाँ पर मात्र देवी की पूजा की जाती है।
  • नोट: प्रो आर एस त्रिपाठी की मान्यता है कि पूजा के क्षेत्र में सर्वाधिक प्रतिष्ठित मात्र शक्ति की थी। जिसकी आराधना प्राचीन काल से ईरान से लेकर इंडियन सागर तक के सारे देशों में होते थे।
  • मात्र देवी सृष्टि की उत्पत्ति व वनस्पति के फैलाव में देवी का योगदान स्वीकार किया गया है।
  • इस समय मात्र देवी को प्रसन्न करने के लिए बलि तथा प्रथा का प्रचलन था। पूजा, आराधना, नृत्य, संगीत बलि देकर की जाती थी। इस काल में मंदिरों के अवशेष नहीं मिलते हैं।
शिव या परम पुरुष की उपासना :-
  • उत्खनन में अर्नेस्ट मैके की एक सील मुद्रा मिली जिसमें एक पुरुष के चित्र की शिर के दोनों और सींग है। इस योगी के तीन मुख है। शांत व गंभीर मुद्रा में है। इसके बायीं ओर भैंस और गीदड़ तथा दायीं ओर शेर और हाथी है। सामने हिरण है। इस ध्यानमग्न योगी के सिर के ऊपर पाँच शब्द लिख हुए हैं। जिन्हें अब तक पढ़ा नहीं जा सका है। (परम पुरुष के रूप में पशुपति शिव की आराधना)
  • अनेक मोहरों में पीपल तथा उसकी पत्तियों के चित्र बने अंकन है। जिसमें ऐसा लगता है कि वह लोग वृक्ष पूजा के अंतर्गत पीपल की पूजा करते थे। वर्तमान में भी पीपल की वृक्ष पूजा की जाती है।
  • इनके अतिरिक्त अनेक मोहरों पर सांड और बैल चित्रित अंकित है।
  • वर्तमान में शिव भगवान के साथ सांड (नन्दी) की पूजा पूरे भारत वर्ष में कई जाती है।
लिंग पूजा :-उत्खनन में लिंग पूजा पत्थर (स्टोन) के लिंग मिले है। इससे अनुमान लगाया जाता है कि लिंग पूजा का प्रचलन हड़प्पा संस्कृति में था। इनमें से कुछ लिंगों के शीर्ष गोल आकार नोकदार कुछ लिंग एक या दो इंच के कुछ तो चार फीट के भी मिले है। स्वास्तिक चिन्ह एवं क्रास तथा पिस्सल हड़प्पा काल के पवित्र चिन्ह है। जो आज भी पवित्र माने जाते हैं। हड़प्पा सभ्यता में राजनैतिक जीवन :-यहाँ पर राजनैतिक जीवन व राजनीतिक व्यवस्था की जानकारी बहुत कम मिलती है। इतिहासकार हंटर की मान्यता है कि मोहनजोदड़ो में शासन लोकतान्त्रिक भी था एवं राजतान्त्रिक नहीं था। इतिहासकार व्हीलर की मान्यता है कि मोहनजोदड़ो का शासन व्यवस्था पुरोहित व धर्मगुरु के हाथों में थी। वे जनप्रतिनिधियों के माध्यम से शासन करते थे। नगर निर्माण व भवन निर्माण को देखकर ऐसा लगता है। की वहाँ पर नगर पालिका रही होगी।हड़प्पा सभ्यता में कला का विकास
  • मूर्तिकल
  • धातुकल
  • वस्त्र निर्माण कल
  • चित्रकल
  • पात्र निर्माण कला
  • नृत्य तथा संगीत कला
  • मुद्रा कला
  • ताम्र निर्माण कला
  • लेखन कला
मूर्तिकला:- उद्खनन में प्राप्त पत्थर की मूर्तियाँ कांसे की मूर्तियाँ इसमें अंगों की छलक दिखाई गई है। एक नर्तकी की मूर्ति बहुत ही सुंदर व आकर्षक है इन मूर्तियों में गाल की हड्डी बहुत ही सुंदर व आकर्षक है आँखें तिरछी व पतली है गर्दन छोटी व पतली है।धातुकला :- सोना, चाँदी, ताँबा, आदि के आभूषण मिले हैं।वस्त्र निर्माण कला:- उद्खनन में चरखा मिला है। जिससे पता चलता है की सूत काटने का काम में वहाँ के लोग निपुण थे। सूती, ऊनी, रेशम वस्त्र पहनते थे।चित्रकला:- मोहेन्जो पर साँड़ के चित्र, भैंसे के चित्र, बकरी के चित्र इसका मतलब तो लोग चित्रकला में निपुण थे।पात्र – निर्माण कला:- मिट्टी के पात्र बनाने में, पानी भरने के लिए तरह – तरह के घड़े, अन्नाज रखने के लिए छोटे अनेक प्रकार के भांड, मिट्टी के खिलौने इसका मतलब वो पात्र – निर्माण कला में निपुण थे।नृत्य तथा संगीत कला :- नृत्यांगना की मूर्ति मिली है पात्रों पर तलेवे तथा ढोलक के चित्र मिलते हैं।मुद्रा कला:- उद्खनन में भिन्न-भिन्न प्रकार के पत्थरों धातुओं तथा हाथी दाँत व मिट्टी की 600 मुद्राएँ मिली है। जिन पर एक ओर पशुओं के चित्र और दूसरी ओर लेख मिलते है। ताम्र निर्माण कला:- उद्खनन में अनेक ताम्र पत्र मिले हैं जो वर्गाकार व आयताकार के हैं। इनमें पशुओं व मनुष्य के चित्र मिले हैं। पशुओं में बैल, भैंसा, गोज, साँड़, हाथी, शेर आदि मनुष्य में योगी के चित्र मिले हैं।लेखन कला:- उद्खनन कोई भी लिखित शिलालेख या ताम्रपत्र नहीं मिला है। लेकिन फिर भी विद्वानों में मतभेद है (लिपि में के बारे में) यह लिपि चित्रलिपि थी। दाएँ से बाएँ तथा बाएँ से दाएँ दोनों ओर लिखी जाती थी। विलासिता की खोज:- फ्यांश (सिद्ध हुई रेत, अथवा बालू तथा जाँघ और चिपचिपे पदार्थ के मिश्रण को पकाकर बनाया गया पदार्थ) के छोटे पात्र सम्भवतः कीमती थे। क्योंकि इन्हें बनाना कठिन था। सुगंधित पदार्थों के रूप में बने लघुपात्र मोहनजोदड़ो और हड़प्पा से मिले हैं। सोना भी दुर्लभ तथा सम्भवत: आज की तरह कीमती था। हड़प्पा स्थलों से मिले सभी स्वर्णाभूषण संग्रहों से प्राप्त हुए हैं।मोहरों का आदान प्रदान:- सिंधु सभ्यता की मोहरे उर, सुमेर, क्रिश, उम्मा, तेलुसरमा, बहरीन, आदि से मिली हैं। मेसोपोटामिया की मोहरे मोहनजोदड़ो तथा लोथल से मिली हैं (वस्त्रों का आदान प्रदान की पुष्टि) जॉन मार्शल को मोहनजोदड़ो से एक ऐसी मोहर मिली है जिस पर एक व्यक्ति को बाघ से लड़ते हुए दिखाया गया है। जॉन मार्शल के अनुसार यह विचार बेबीलोनिया के महाकाव्य गिलगमेश से लिया गया है। मृदभाण्ड :- यहाँ के मृदभाण्ड मुख्यतः गाढ़ी लसा चिकनी मिट्टी से निर्मित है। जिन पर काले रंग का चित्रण है। मुख्यतः ज्यामितीय चित्रण लोथल से एक ऐसा मृदभाण्ड मिला है जिस पर चित्रित चित्र का समीकरण पंचतंत्र की कहानी चालाक लोमड़ी से किया गया है। हड़प्पा से प्राप्त एक मृदभाण्ड पर मानव और बच्चे का चित्र मिला है। डिज़ाइनदार मृदभाण्ड भी मिले हैं। जिसमें अलग-अलग रंगों का भी प्रयोग किया गया है। इनका सजावट के लिए प्रयोग किया जाता था। कलात्मक अवशेष :- हड़प्पा से प्राप्त काले पत्थर से निर्मित नृत्य की मूर्ति नटराज नृत्य की मुद्रा में हड़प्पा से भी प्राप्त सिरविहीन मानव की मूर्ति मोहनजोदड़ो से प्राप्त सिरविहीन मानव मूर्ति मोहनजोदड़ो से प्राप्त कांस्य नर्तकीहड़प्पा शहर की जल निकास प्रणाली :- सड़कें व गलियों का एक पद्धति पर बनाया जाता जो एक दूसरे को समकोण पर काटते थे पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया जाता फिर उन के अगल-बगल घरों का निर्माण किया गया घरों के गंदे पानी की नालियों को गलियों की नालियों से जोड़ने के लिए प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार गली से सटी थी मुख्य नाले गारे में जमाई गई ईंटों से बने थे और ऐसी ईंटों से ढका गया था जिन्हें सफाई के लिए हटाया जा सके घरों की नालियां पहले एक होदियों में खोली जाती थीं। जिसमें ठोस पदार्थ जमा हो जाता था और गंदा पानी गली की नालियों में बह जाता था। बहुत लंबे नालों में कुछ अंतराल ऊपर सफाई के लिए होदियां बनाई गईं।नोट :- मोहनजोदड़ो में कुओं की कुल संख्या लगभग 700 थी।नोट :- बहुतायत से पकाई ईंटों का प्रयोग मुख्य रूप से चार प्रकार की ईंटें प्रयुक्त की जाती थीं। आयताकार = 4:2:1 L प्रकार की ईंटें इन ईंटों पर प्रयोग कोनों में किया जाता था। नोकदार ईंटें इनका प्रयोग कुओं में किया जाता है। T प्रकार की ईंटें इनका प्रयोग सीढ़ियों में किया जाता था। अलंक्रत ईंटों से निर्मित फर्श कालीबंगा में मिलता है। ईंट पर बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के पंजे के निशान मिले हैं। यह चन्हूदड़ो सभ्यता से मिला है। सामाजिक भिन्न नेताओं का अवलोकन ( शवाधान ) हड़प्पा सभ्यता में भ्रतक कर्म ( अन्त्येष्टि क्रिया ) :-हड़प्पा कालीन नगरों (मोहनजोदड़ो, बनावली, हड़प्पा, कालीबंगा ) आदि में शमशान के अवशेष मिले हैं। सर जॉन मार्शल के अनुसार इसे तीन भागों में विभाजित किया गया है। 1) पूर्ण समाधिकरण / शवाधान 2) आंशिक समाधिकरण / शवाधान 3 ) दाह कर्म / त्रोषर शवाधानपूर्ण शवाधान:- शव को उत्तर से लेकर दक्षिण की ओर दफनाया जाता था। नोट :- हड़प्पा में एक कब्र मिली है जिसे दक्षिण से उत्तर की ओर दफनाया गया है। और सबको दफनाया रखा गया है। लोथल में पूर्व से पश्चिम की ओर दफनाने के अवशेष मिले हैं। तथा शव कबकट के रूप में हैं। लोथल से ही युग्म शव (स्त्री, पुरुष ) मिला है। इससे पता चलता है कि उस समय सती प्रथा प्रचलित थी। सबसे बड़ा कब्रिस्तान हड़प्पा से मिला है जिसे R37 की संज्ञा दी गई है। हड़प्पा संस्कृति में एक और कब्रिस्तान मिला है जिसे मनु कब्रिस्तान की संज्ञा दी गई है। आंशिक शवाधान :- पशु-पक्षियों द्वारा खाने के शव कोबाद बचे हुए अवशेषों को दफना देना। कष्टोर शवाधान / दाह कर्म :- दाह के पश्चात बचे हुए अवशेषों को किसी कलश या मंजूषा (बर्तन) में रखकर दफना देना। 1.  हड़प्पा स्थल उसे विशेष समाधानों में अलग-अलग गड्ढों में दफनाया गया था कभी-कभी शवाधान गड्ढों की बनावट अलग-अलग होती थी। 2.कुछ कब्रों में मृतकों तथा सामान मिलने के ऐसे प्रमाण मिले हैं जिससे अनुमानित है की वस्तुओं का मरणोपरांत प्रयोग किया जा सकता था। 3.1980 के दशक के मध्य में हड़प्पा के कब्रिस्तान में हुए उत्खननों में एक पुरुष की खोपड़ी के समीप जैस्पर (एक प्रकार का उप रत्न) मनके तथा सैकड़ों की संख्या में सूक्ष्म मनके से बना एक आभूषण मिला था कहीं-कहीं पर मृतकों को तांबे के दर्पण के साथ दफनाया गया था विलासिता की वस्तुएं :-सामाजिक भिन्नता को पहचानने की एक अन्य विधि है विलासिता की वस्तु का वर्गीकरण करना पहली वस्तु है रोजमर्रा के उपयोग की वस्तुएं जैसे चाकिया मुदभांड सुईया झावा इत्यादि यह वस्तु सामान्य रूप से बस्तियों में पाई गई हैपुरातत्वविद् उन वस्तुओं को बहुमूल्य मानते थे जो अनुपलब्ध या जटिल तकनीकी से बनी हो जैसे प्यासां के बने छोटे पात्र कीमती माने जाते थे क्योंकि इन्हे बनाना कठिन था तथा यह सुसंगठित दृष्ट्य के पात्रों के रूप में प्रयोगत होते थे जो मोहनजोदड़ो हड़प्पा से मिले हैं और कालिबंगां इन जैसे छोटी बस्ती उसे बिल्कुल नहीं मिले सोना भी दुर्लभ और कीमती था हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने हेतु पदार्थों की सूची बताइए तथा किसी एक प्रकार के मनके बनाने की तकनीक का वर्णन कीजिए
  • हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के लिए कार्नेलियन जेसपुर क्वार्ट्ज तथा सेलखड़ी जैसे पत्थर, तांबा कांसा और सोना जैसी धातु, शंख पयांस और पक्की मिट्टी का प्रयोग किया जाता था
  • मनके बनाने की तकनीक:- मनके बनाने की तकनीक में प्रयुक्त पदार्थ के अनुसार भिन्नताएं थी
  • सेलखड़ी जो एक बहुत मुलायम पत्थर है कुछ मनके सेलखड़ी चूर्ण के लेप को सांचे में डालकर तैयार किए जाते थे सिंधु सभ्यता की लिपि :-
  • सिंधु लिपि को पढ़ने का प्रथम प्रयास 1925 में वेडेल ने तथा नवीनतम प्रयास नटवर झा, धनपत सिंह धान्या, राजाराम ने की थी। लेकिन अभी तक भी सिंधु लिपि को प्रमाणित रूप से पढ़ा नहीं जा सकता है।
  • लिपि के सबसे ज्यादा अक्षर मोहंजोदड़ो से तथा दूसरे नंबर पर हड़प्पा से मिले हैं। लिपि के सबसे बड़े अक्षर धोतावीरा से मिले हैं। जिन्हें Notice Board का प्रतीक माना गया है।
  • सिंधु लिपि भावचित्रात्मक है। अर्थात चित्रों के माध्यम से भावो को अभिव्यक्त करना। सिंधु लिपि दोनों और से लिखी जाती है इसलिए इसे बाउस्ट्रोफेडेन कहा गया है।
  • सिंधु सभ्यता के विभिन्न पक्षों को जानने की दृष्टि से विशेष उल्लेखनीय हैं: सेलखड़ी प्रस्तर एवं पक्की मिट्टी से निर्मित विभिन्न आकार और प्रकार की मोहरे जिनमे आयताकार और वर्गाकार प्रमुख आयताकार पर केवल लेख मिलते हैं जबकि वर्गाकार पर लेख और चित्र दोनों मिलते हैं। मेसोपोटामिया की 5 बेलनाकार मोहरे मोहंन्जोदड़ो से मिली है तथा फारस की मार्बल हुई संगमरमर की मोहरे लोथल से मिली है।
हड़प्पा लिपि की विशेषताएं:-यह लिपि दाई से बाई और लिखी जाती थी। इस लिपि में चिन्हो की संख्या 375 से 400 तक थी। यह लिपि चित्रात्मक लिपि है। इस लिपि को आज तक नहीं पढ़ा जा सका।मोहरे: मुद्रांक भेजने वाले की पहचान बताने में मदद करते थे तथा यदि वे टूटी नहीं होती थी तो पता चल जाता था कि किसी ने उससे छेड़छाड़ नहीं की मतलब वह सुरक्षित वस्तु थी। बाँट:- तोल के लिए तराज़ू व वाट सम्मिलित थे। चिकने पत्थर से वाट का निर्माण किया जाता था। बाँट चर्ट नामक पत्थर से बनाए जाते थे। यह घनाकार होते थे इन बाटो के नीचे मानदंड दोआधारी होते थे। 1.2.4.8.16.32.12800 तक थे। इनका प्रयोग आभूषण और मनको को तोलने के लिए किया जाता था। सबसे बड़े वाट का वजन 375 ग्राम था सबसे छोटे का वजन 0.87 ग्राम था।हड़प्पा सभ्यता का अंतबाढ़ :- कुछ विद्वानों का कहना है कि सिंधु नदी में आने वाली बाढ़ के कारण यहां के नगर नष्ट हुए समय के साथ-साथ वह रेत के नीचे दब गई।भूकंप :- ऐसा भी विश्वास किया जाता है कि हड़प्पा संस्कृत में जोदरदार भूकंप आए होंगे उन्ही भूकंप के कारण वहां के नगर नष्ट भ्रष्ट हो गए।अकाल तथा महामारियाँ :- कुछ विद्वानों का विश्वास है कि उस प्रदेश में या तो भयंकर अकाल पड़ा होगा या फिर भयंकर महामारी फैली होगी। आर्य जाति के आक्रमण:- कई इतिहासकारों का विचार है कि वहां के लोगों को आर्य जाति के लोगों से युद्ध करना पड़ा। इन युद्धों में हड़प्पा के लोग पराजित हुए और हड़प्पा संस्कृति का अंत हो गया।कनिंगम :- Cunningham :-
  • कनिंगम भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग का पहला डायरेक्टर जनरल था। अलेक्जेंडर कनिंगम को भारतीय पुरातत्व का जनक भी कहा जाता है।
  • कनिंगम ने 19वीं शताब्दी के मध्य में पुरातात्विक खनन आरंभ किया। यह लिखित स्रोतों का प्रयोग अधिक पसंद करते थे।
कनिंगम का भ्रम :- कनिंगम ने अपने सर्वेक्षण के दौरान मिले अभिलेखों का संग्रहण पर लेखन तथा अनुवाद भी किया। हड़प्पा वस्तुएं 19वीं शताब्दी में कभी कभी मिलती थी और कनिंगम तक पहुंची भी। एक अंग्रेज ने कनिंगम को हड़प्पा में पाई गयी एक मुहर दी। अलेक्जेंडर कनिंगम को एक अंग्रेज अधिकारी ने जब हड़प्पाई मुहर दिखाई तो कनिंगम यह नहीं समझ पाए कि वह मुहर कितनी पुरानी थी। कनिंगम ने उस मुहर को उस कालखंड से जोड़कर बताया जिसके बारे में उन्हें जानकारी थी। वे उसके महत्व को समझ ही नहीं पाए कि वह मुहर कितनी प्राचीन थी। कनिंगम ने यह सोचा कि यह मुहर भारतीय इतिहास का प्रारंभ गंगा घाटी में पनपे पहले शहरों से संबंधित है जबकि यह मुहर गंगा घाटी के शहरों से भी पहले की थी।

Class 12 History Chapter 1 – PDF Notes (Bricks, Beads aur Bones)

These revision notes for Class 12 History Notes Chapter 1 students are available for free saving in PDF format. To save these you can send a mail and in a message ask for the chapter for which you require notes and send the rest of the details. We will provide you the notes in 2 hours and if you want to remain updated with the news of your education then you can join our WhatsApp community. You can easily revise the Bricks, Beads and Bones chapter before the exam and score good marks. you can also check your class 12th history notes.

CBSE class 12th History Notes chapter - Part 1

There are 15 chapters in the Class 12th English Behavior book. Students can access it at 1 click and save it on their phone.

Check out :

 1: Bricks, Beads and Bones The Harappan Civilisation

 2: Kings, Farmers and Towns Early States and Economies

 3: Kinship, Caste and Class Early Societies

 4: Thinkers, Beliefs and Buildings Cultural Developments

Part 2

 5: Through the Eyes of Travellers Perceptions of Society

 6: Bhakti-Sufi Traditions Changes in Religious Beliefs and Devotional Texts

 7: An Imperial Capital: Vijayanagara

 8: Peasants, Zamindars and the State Agrarian Society and the Mughal Empire

Part 3

 9: Kings and Chronicles The Mughal Courts

 10: Colonialism and the Countryside: Exploring Official Archives

 11: Rebels and the Raj The Revolt of 1857 and its Representations

 12: Colonial Cities Urbanisation, Planning and Architecture

 13: Mahatma Gandhi and the Nationalist Movement Civil Disobedience and Beyond

 14: Understanding Partition Politics, Memories, Experiences

 15: Framing the Constitution The Beginning of a New Era

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